सदियों का
रतजगा मेरी रातों
में आ गया,
मैं एक हसीन
शख्स की बातों में
आ गया!
वो हँसते रहे
मैं मुस्कराता रहा!
कई दफा अश्क
बातोँ बातोँ आ गया!
वो ठुकरा भी ना सके
कायदे से मुझे,
आदतन आज फिर
गुलाब उनका
किताबोँ में आ गया!
वो बेचैनी
समझते नहीं मेरी,
उनकी ही वजह से मेरा
इश्क, तुफानोँ में आ गया!
मैं मंका देखता
हूँ जब अपना, उनके
वगैर लगता है जैसे
किन वीरानोँ में आ गया!!
अभिजीत ठाकुर
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