अखंड में ही खंड गतिशील हो सकता है!! - Path Me Harshringar : by Abhijit Thakur

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Tuesday, 22 January 2019

अखंड में ही खंड गतिशील हो सकता है!!


अखंड में ही खंड गतिशील हो सकता है। खंड का अस्तित्व ही अखंड के बिना असंभव है। खंड अखंड में ही सुख,दुख लाभ,हानि और मान,अपमान का भोक्ता होता है।

वासना ही मुख्य रुप से अखंड को खंडित रखती है। अखंड अनादि है,जबकि खंड का कोई भरोसा नहीं।

जैसे आकाश में उड़ते हुए पंछी दुर उड़ जाते हैं,आँखों से ओझल हो जाते हैं,फिर भी आकाश बच जाता है। 
हम देखेँ ना देखेँ,हम जानेँ या ना जानेँ अखंड तो सदैव रहता ही है। 

मित्रों! हममें से कोई कितनी ही दुरी पर क्योँ ना हो सब अखंड में स्थित हैँ,और जिनकी अखंड में स्थिति है उन्हें फिर खंड नहीं दिखते,उनके लिए निकटता सदैव स्थाई है।

दो खंडोँ के मध्य में जो दुरी (अदृश्यता)विद्यमान होती है वहाँ अखंड व्याप्त रहता है।खंड में अखंड ना देख पाना ही पाखंड है अज्ञान है।देख पाना ही ज्ञान। 

- अभिजीत ठाकुर

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