मन का कुरुक्षेत्र
सुनो पार्थ!
दुःख मन पर
स्वयं अनुप्राणित न करो,
बहुत हुआ,
संभलो..अब बस भी करो!
अतीत की नौका
से भविष्य का विचरण,
विषम काल में हे पार्थ!
अशोभनीय तुम्हारा ये आचरण?
वर्तमान रूपी गांडीव उठा लो,
कुंठाएं मथकर,कर्म अभीष्ट बना लो,
मृत्यु को जीता दो या सुयश बचा लो,
मन का कुरुक्षेत्र तत्क्षण मिटा दो!!
- अभिजीत ठाकुर
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