Hindi Article- colourful festival holi: होली का महत्वपूर्ण आध्यात्मिक रूप! - Path Me Harshringar : by Abhijit Thakur

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Thursday, 21 March 2019

Hindi Article- colourful festival holi: होली का महत्वपूर्ण आध्यात्मिक रूप!



होली का आध्यात्मिक रूप : अंतःकरण में ज्ञान रूपी अग्नि में अविद्या रूपी होलिका का जल जाना और भगवद्प्रेम रूपी प्रह्लाद का निखर आना ही होली पर्व का वास्तविक पक्ष है।
समष्टि सूक्ष्म का नाम हिरण्यगर्भ है, इसी से स्थूल जगत उत्पन्न है, इसका अंकुश ही हिरण्यांकुश है। यही मूल अज्ञान है, जो जन्मादि का बंधन डालकर, भगवान से विमुख करने वाला है।

(इस जगत पर जिसकी दृष्टि टिकी है, वह हिरण्य+अक्ष, हिरण्याक्ष है)
नारायण शब्द श्रवण संयोग से, बुद्धि में भगवद्प्रेम का उदय हो जाना ही प्रह्लाद का जन्म है। अभी यह छोटा है, नामजप से आगे विकास को प्राप्त होगा।
अनेकानेक संकटों से गुजरने के बाद, प्रेम प्रगाढ़ होने पर, अन्य चारा न देख, अविद्या होलिका इसे अपने आवरण में डालकर, विषयाग्नि में जला डालने का प्रयास करती है, पर साधक आसक्ति रहित होने से बच जाता है, अविद्या स्वयं राख हो जाती है।

इसी प्रक्रिया को स्मरण कराने के लिए सनातन हिन्दू परम्परा में होली मनाई जाती है। उद्देश्य यही है कि साधक इसी मार्ग से चलता हुआ, स्वयं प्रह्लाद हो जाए। कालांतर में, दृढ़ निश्चयात्मिका बुद्धि रूपी स्तम्भ से, वह सत्स्वरूप परमात्मा अपरोक्ष हो जाता है। नर मृत्यु के भय से पार होकर भय रहित सिंह हो जाता है, यही नरसिंह अवतार है।

तब द्वैत रहता ही नहीं, दिन रात, अंदर बाहर, ऊपर नीचे का भेद रहता ही नहीं। उस परम अद्वैत में, जहाँ कूटस्थ आत्मस्वरूप के सिवा दूसरा कुछ है ही नहीं, वहाँ हिरण्यांकुश कैसे बचे?
यही परमात्मा प्राप्ति है।

होलिकोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं!

अभिजीत ठाकुर

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