नही भूलती वो आंखें
गुमसुदा जो बताती बातें,
उन्ही में था ठिकाना
हदों में बंद मैखाना,
छन्दों सा ह्रदय पैमाना
वो आंखें नही भूलती,
भूल चुका एक जमाना
ह्रदय टटोलती वो आंखें,
आत्मझील सी वो आंखें
परमात्म सा मधुर दृष्टिपात,
खिल उठें अनगिनत गात
निर्जन वन सा जीवन
युगों खोजता वो आंखें
क्यों नही भूलती वो आंखे,
वो अनाम गुमसुदगी का थीं पता
वो थी हंसती बोलती मेरी कथा!!
अभिजीत ठाकुर
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