अपने सवेरों की तलाश में
रातों की पगडंडियों पर चलता हूं!
किसी वक़्त तुम याद आते हो
कभी मैं खुद को भूल जाता हूं!
सितारों के हसीन जमघट में
तुम्हरा चेहरा चाँद हो जैसे,
चांदनी तुम्हरा अहसास हो जैसे
समेटने की कोशिश करता हूँ !
सदा उस प्यार की चांदी को
सदा उस प्यार की चांदी को
जिसे तुम्हरा नाम दिया है मैंने,
लेकिन सवेरों की ये तलाश
मुझे तुमसे जुदा करती है!
युगों तक तन्हा करती है
सुनो! इस बार सवेरे नही मुझे
तुम्हारे प्रेम की रोशनी चाहिये!!
अभिजीत ठाकुर
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