जीत कर ही नहीं,
हारकर भी देखा है!
जीवन मेरा शायद किसी
और हथेली की भी रेखा!
उम्मीद के दरख्तों
सी मजबूत नहीं थी मेरी,
फिर भी सूरज ने
मेरी पलकों में था देखा!
जिंदगी मान भी जाए ऐ दोस्त
तो भी मैं भूल तो नहीं सकता
ये कितना बड़ा है धोखा !!
अभिजीत ठाकुर
Nice poem keep it up bro
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