Baba Neem Karori: संक्षिप्त जीवन परिचय - Path Me Harshringar : by Abhijit Thakur

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Tuesday 5 December 2023

Baba Neem Karori: संक्षिप्त जीवन परिचय


 नीम करौली बाबा का वास्तविक नाम क्या था? वे नीम करौली बाबा के नाम से कैसे प्रसिद्ध हुए?
प्रस्तुत है महाराज जी की संक्षिप्त जीवन परिचय!!


नीम करौली बाबा जिनका वास्तविक नाम लक्ष्मी नारायण था, का जन्म उत्तर प्रदेश के अकबरपुर जिले में सन् 1900 आसपास हुआ था। वह कम उम्र में ही गुजरात चले गये और वहां बावनिया नामक स्थान पर रहने लगे। कुछ समय बाद वह दूसरे स्थानों पर चले गये । नीम करौली बाबा ने अपने जीवन काल में बहुत से मंदिरों का निर्माण करवाया तथा बहुत से लोगों की मदद की। पश्चिमी दुनिया में इन्हें बाबा रामदास और बाबा भगवानदास ने लोकप्रिय बनाया। उन्होंने अपने पार्थिव शरीर का त्याग 1973 में वृन्दावन में किया। उनके जाने के बाद भी बड़ी संख्या में उनके भक्त व अनुयायी उनके द्वारा बताए सिद्धांतों से मार्ग दर्शन प्राप्त कर रहे हैं।महाराज जी का जन्म एक संपन्न ब्राह्मण जमींदार घराने में अकबरपुर नामक गाँव (जिला - फिराज़ाबाद, उत्तर प्रदेश) में हुआ। मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्श अष्टमी को वो इस धरा पर अवतरित हुए। उनके पिता श्री दुर्गा प्रसाद शर्मा ने उनका नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा रखा। बाल्यावस्था से ही महाराजजी का सांसारिक वस्तुओं से मोह छूट गया था। ग्यारह वर्ष की आयु में उनका विवाह एक धनी ब्राह्मण परिवार की लड़की से कर दिया गया। विवाह के ठीक बाद महाराजजी घर छोड़कर गुजरात चले गए। इस समय उन्होंने गुजरात एवं भारत के अन्य प्रदेशों में भ्रमण किया। करीब 10-15 वर्ष बाद किसी व्यक्ति ने उनके पिता को सूचित किया कि उनके पुत्र जैसा कोई साधू नीम करौली नामक गाँव (जिला - फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश) में देखा गया है। उनके पिता अपने पुत्र से मिलने तुरंत नीम करौली गए। वहाँ वो महाराजजी से मिले और उन्हें घर लौटने का आदेश दिया। महाराजजी अपने पिता के आदेशानुसार वापस लौट आये। तदुपरान्त महाराजजी के दो व्यक्तित्व उभर के आये - एक गृहस्थ का और दूसरा सन्यासी का। वो अपने परिवार का पूरा ध्यान रखते थे और साथ ही साथ अपने विस्तृत परिवार अर्थात् सम्पूर्ण विश्व का भी ख्याल रखते थे। दोनों ही कार्यों को वो एक ही ढंग से करते थे। गृहस्थ जीवन से उनके दो पुत्र एवं एक सुपुत्री हैं। वो कहते थे कि सम्पूर्ण विश्व उनका परिवार है और मानते थे कि - सबसे प्रेम करो, सबकी सेवा करो, सबको खिलाओ। वो कहते थे कि यही भगवान को पाने की कुंजी है। वो जन्म से ही संत थे। जहाँ भी गये उन्होंने यज्ञ और भंडारे कराये। दोनों साथ-साथ कराये जाते थे - यज्ञ देवताओं को खिलाने के लिए और भंडारे सामान्य मनुष्यों को। उन्होंने बहुत जगहों पर हनुमानजी के मंदिर बनवाए। निर्वाण से पहले उन्होंने दो आश्रम भी स्थापित किये। पहला आश्रम कैंची (जिला - नैनीताल, उत्तराखंड) में और दूसरा वृन्दावन (जिला - मथुरा, उत्तर प्रदेश) में है। महाराजजी ने अपनी महासमाधि के लिए वृन्दावन को चुना। वृन्दावन वही भूमि है जहाँ कृष्ण ने अपनी लीलाएँ कीं। 09 सितम्बर, 1973 को महाराजजी ने कैंची से आगरा के लिए प्रस्थान किया। यह उनकी कैंची की अंतिम यात्रा थी और आने से पहले उन्होंने वहाँ काफी संकेत छोड़े कि अब वो वापस नहीं आयेंगे। 10 सितम्बर को आगरा पहुँचने पर वो तुरंत वृन्दावन के लिए रवाना हुए जहाँ उन्होंने 11 सितम्बर को समाधि ली। नीम करौली बाबा या महाराजजी (इनका अधिक प्रचलित नाम) की गणना बीसवीं शताब्दी के सबसे महान संतों में होती है। महाराजजी इस युग के भारतीय दिव्यपुरुषों में से हैं। यह वेबसाईट उनके व्यस्वरूप को समर्पित है। इस वेबसाईट का मुख्य उद्देश्य महाराजजी के जन्म स्थल - अकबरपुर और समाधि स्थल - वृन्दावन की महत्ता को उजागर करना है। कैंची मंदिर कैंची मंदिर, भुवाली से 7 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। नीम करौली बाबा को यह स्थान बहुत प्रिय था। प्राय: हर गर्मियों में वे यहीं आकर निवास करते थे। बाबा के भक्तों ने इस स्थान पर हनुमान जी का भव्य मन्दिर बनवाया। उस मन्दिर में हनुमान जी की मूर्ति के साथ-साथ अन्य देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं। अब तो यहाँ पर बाबा नीम करौली की भी एक भव्य मूर्ति स्थापित कर दी गयी है। यहाँ पर यात्रियों के ठहरने के लिए एक सुन्दर धर्मशाला भी है। यहाँ पर देश-विदेश के आये लोग प्रकृति का आनन्द लेते हैं। कैंची मन्दिर में प्रतिवर्ष 15 जून को वार्षिक समारोह मानाया जाता है। उस दिन यहाँ बाबा के भक्तों की विशाल भीड़ लगी रहती है। नवरात्रों में यहाँ विशेष पूजन होता है। नीम करौली बाबा सिद्ध पुरुष थे। उनकी सिद्धियों के विषय में अनेक कथाएँ प्रसिद्ध हैं। कहते हैं कि बाबा पर बजरंगबली की विशेष कृपा थी। भगवान हनुमान के कारण ही उन्हें इतनी ख्याति प्राप्त हुई। वे जहाँ जाते थे वहीं हनुमान मन्दिर बनवाते थे। लखनऊ का हनुमान मन्दिर भी उन्होंने ही बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि बाबा को हनुमान जी की सिद्धी थी। उनका नाम नीम करौली पड़ने के सम्बन्ध में एक कथा कही जाती है। नीम करौली गाँव में रहकर हनुमान की साधना करते थे, एक बार उन्हें रेलगाड़ी में बैठने की इच्छा हुई। नीम करौली के स्टेशन पर जैसे ही गाड़ी रुकी, बाबाजी रेल के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में जाकर बैठ गए। कंडक्टर गार्ड को जैसे ही ज्ञात हुआ कि बाबाजी बिना टिकट के बैठे हैं तो उन्होंने कहा कि बाबाजी, आप गाड़ी से उतर जाएँ। बाबाजी मुस्कुराते हुए गाड़ी के डिब्बे से उतरकर स्टेशन के सामने ही आसन जमाकर बैठ गए। उधर गार्ड ने सीटी बजाई, झंडी दिखाई और ड्राइवर ने गाड़ी चलाने का सारा उपक्रम किया, किन्तु गाड़ी एक इंच भी आगे न बढ़ सकी। लोगों ने गार्ड से कहा कि कंडक्टर ने बाबाजी से अभद्रता की है। इसीलिए उनके प्रभाव के कारण गाड़ी आगे नहीं सरक पा रही है। परन्तु रेल कर्मचारियों ने बाबा को ढोंगी समझा। गाड़ी को चलाने के लिए कई कोशिशें की गयीं। कई इंजन और लगाए गए परन्तु गाड़ी टस से मस तक न हुई। अन्त में बाबा की शरण में जाकर कंडक्टर, गार्ड और ड्राइवर ने क्षमा माँगी। उन्हें आदर से प्रथम श्रेणी के डिब्बे में बिठाया। जैसे ही बाबा डिब्बे में बैठे, वैसे ही गाड़ी चल पड़ी। तब से बाबा 'नीम करौली बाबा' पड़ा। तब से अपने चमत्कारों के कारण वे सब जगह विख्यात हो गये थे। अपनी मृत्यु की अन्तिम तिथि तक भी वे हनुमान के मन्दिरों को बनवाने का कार्य करते रहे और दु:खी व्यक्तियों की सेवा करते रहे। कैंची में भी कई दुखियों की उन्होंने सेवा की थी। उनके पास कोई व्यक्ति क्यों आया है? यह बात वे पहले ही बताकर आगंतुक को आश्चर्य में डाल देते थे। आज भी बाबा के नाम पर कैंची में भोज का आयोजन होता है।


अभिजीत ठाकुर

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