परम अभिलाषी धैर्य की पराकाष्ठा होते हैं।पृथ्वी की मिसाल देना भी उचित नहीं, क्योँकि वह भी अपना धैर्य कभी ना कभी खो बैठती है।
विशाल टहनियों, बलशाली तने एवं गहरी जड़ों वाले वृक्ष भी जो सैकड़ों वर्षों से अविचल खड़े हैं वे भी धैर्य की वो शर्त पूरी नहीं करते,जो एक भक्त के लिये खेल की भाँति होता है।
असीम धैर्य की ये मिसाल हमें शास्त्रोँ और ग्रंथोँ में अहिल्या और सबरी के रूप में अवश्य देखने को मिलती है।
अभिप्राय मात्र इतना कि जब तक परम ना आये भक्त पल प्रतिपल प्रतीक्षारत रहता है,धैर्य की पूर्ण आहुति परम के आगमन पर ही संपन्न हो सकती है।
- अभिजीत ठाकुर
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