जनून ए इशक़
कुछ इस क़दर छाया
रहता है।
फिक्र नहीं गैरों की
अब कौन यहाँ पराया
लगता है।
आशिक़ी मिली बतौर
इबादत
सहारा सा देता
हम साया लगता है।
चला ले चाहे काटों पर
या फूलों पर रहे,
एहसास के बस तुने
बुलाया लगता है।
अभिजीत ठाकुर
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