सारे शहर में घुमा, इस छोर से!! - Path Me Harshringar : by Abhijit Thakur

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Thursday 24 January 2019

सारे शहर में घुमा, इस छोर से!!


सारे शहर में
घुमा, इस छोर से
उस छोर तक!
कहीं सुंकुन का
ना नामों निशान है!
बस दर्द है और
बेवसी का अंतहीन 
गमो गुब्बार है!
माना रोशन है हर
घर की खिड़कीयां
मगर अंदर अंधेरे
बेशुमार हैं!
यहाँ दिन में
टटोलकर चलना
पड़ता है,
सब कितने लाचार हैं!

सब अंधे आँख वालों को

अंधे नाम से पुकारे,
नामालूम कैसा ये
तेरे शहर का रिवाज है!
तुझ सा खूबसूरत
कैसे रहता है यहाँ कोई,
ये बद्सुरत जहन्नुम
सा शहर आखिर
बिलकुल विरान है!
हमारी मोहब्बत का
शहर, सिहर जाता हूँ
कभी सोचकर,
तेरे बिना बना मेरा
श्मशान है!
मालूम नहीं थी अपने
इश्क के अंजाम
शायद यही मेरा
मुकाम है! 
  
अभिजीत ठाकुर
                  

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