Hindi Poetry: मुसाफ़िर हूँ सदियों सें, कुछ ढूँढता रहा हूँ! - Path Me Harshringar : by Abhijit Thakur

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Friday 25 January 2019

Hindi Poetry: मुसाफ़िर हूँ सदियों सें, कुछ ढूँढता रहा हूँ!


मुसाफ़िर हूँ सदियों
सें, कुछ ढूँढता रहा हूँ
हर बार भूला भटका
सा लौट जाता हूँ,
खाली हाथ!

मेरा कुछ अपना यहाँ
खोया है, मशगूल हूँ
फिर से खोजने में,
बार बार आता हूँ!

इस मुसाफिर खाने
में, वाकिफ हूँ हर
जर्रे से, पहचानते हैं
मुझे सब, पुछती है ये
हवा मिला क्या तुझे,
जो खोया नहीं कभी,

हँस पड़ते है सब
नादनी पर, जिसे ढूँढ
रहा है तु, बस भूला है
याद कर, इस बार
दिल से, याद आ ही
जाएगा, बस यही
इस मुसाफिर खाने का
उसूल है, याद ही हासिल
और मुसाफ़िर की मंजिल है!

फिर ना आना पड़े बन
मुसाफ़िर,कुछ इस
तरह से कर फरियाद के
रब भी फिर तुझे याद करे!

अभिजीत ठाकुर

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