पार्क की बेँच
पास ही दीवार
के पार बड़ा सा
कचरे का टीला।
अक्सर,पार्क बच्चों
से भरा रहता है।
मग्न हैँ बच्चे खेलमें
कई दिलचस्प खेल॥
कुछ बच्चे
कूड़े के ढेर पर,
वे भी मग्न हैं
पर अर्ध नग्न भी,
इनका खेल
खतरनाक,
जंग है की
ना जीतो जो,
भूखे सोना
पड़ सकता है।
कुछ मिलेगा,
देखेँ किस्मत,
खंगालते हैं फिर
फिर पन्नियां,
लकड़ी से
खुरेदते कचरा,
भागाते हैं पास
आये सुवर को।
इनका ये खेल
व्यथित हृदय से,
मजबूर करता है
नजरें चुराने को।
काश! बोरी भर
जाये आज
घर से तमन्ना
लेकर चले होंगे।
वो छ: साल की बच्ची
हिकारत भरी निगाह से,
पार्क के बच्चोँ को मानोँ
दे रही चुनौती।
आओ खेल कर
दिखाओँ मेरा खेल।
हम जीते तो मस्त कलंदर,
जो हारे तो भूखे सिकंदर।
पास ही दीवार
के पार बड़ा सा
कचरे का टीला।
अक्सर,पार्क बच्चों
से भरा रहता है।
मग्न हैँ बच्चे खेलमें
कई दिलचस्प खेल॥
कुछ बच्चे
कूड़े के ढेर पर,
वे भी मग्न हैं
पर अर्ध नग्न भी,
इनका खेल
खतरनाक,
जंग है की
ना जीतो जो,
भूखे सोना
पड़ सकता है।
कुछ मिलेगा,
देखेँ किस्मत,
खंगालते हैं फिर
फिर पन्नियां,
लकड़ी से
खुरेदते कचरा,
भागाते हैं पास
आये सुवर को।
इनका ये खेल
व्यथित हृदय से,
मजबूर करता है
नजरें चुराने को।
काश! बोरी भर
जाये आज
घर से तमन्ना
लेकर चले होंगे।
वो छ: साल की बच्ची
हिकारत भरी निगाह से,
पार्क के बच्चोँ को मानोँ
दे रही चुनौती।
आओ खेल कर
दिखाओँ मेरा खेल।
हम जीते तो मस्त कलंदर,
जो हारे तो भूखे सिकंदर।
अभिजीत ठाकुर
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