हकीकत में तेरे
पास होते हुए भी,
फासलोँ ने तेरे
फैसला कर दिया।
मेरे रिसते जख्मोँ
को कुरेद कर,
तुने सरेआम तामाशा
खड़ा कर दिया।
शर्मो हया,ना वफ़ा
ना दिल में मलाल जरा सा,
बे-आबरू कर
मोहब्बत मेरी,
माशा-अल्लाह,
आशिक़ी का,
खूबसूरत सा हक
अदा कर दिया।
तुने चीर कर दिल मेरा,
टुकड़े टुकड़े तबाह कर दिया।
हमेँ कबूल है हर
गुनाह दे दे सजा ए मौत।
हमने जनून ए इश्क़ में,
तुम्हेँ क्यों खुदा कर दिया।
पास होते हुए भी,
फासलोँ ने तेरे
फैसला कर दिया।
मेरे रिसते जख्मोँ
को कुरेद कर,
तुने सरेआम तामाशा
खड़ा कर दिया।
शर्मो हया,ना वफ़ा
ना दिल में मलाल जरा सा,
बे-आबरू कर
मोहब्बत मेरी,
माशा-अल्लाह,
आशिक़ी का,
खूबसूरत सा हक
अदा कर दिया।
तुने चीर कर दिल मेरा,
हमेँ कबूल है हर
गुनाह दे दे सजा ए मौत।
हमने जनून ए इश्क़ में,
तुम्हेँ क्यों खुदा कर दिया।
अभिजीत ठाकुर
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