बड़े वक्त के बाद, ये वक्त आया है।
जिनके पास रही मुद्दतोँ वक्त की कमी सी।
जैसे किताबोँ से सूखे गुलाब की खुशबू सा,
आज हैरां हूँ मैं, वो मेहरबां वेवक्त आया है।
वो बड़े ही लज्जत ए अदब से मिला गले,
बेरहमी से जिसने मेरा घर जलाया है।
मोहब्बत में हम बस मुसकरा ही सके,
जब मुआफ़ी में उन्होँने सर झुकाया है।
अब वक्त ए अलविदा है हमारे दरम्यां,
खुश रहें वो हमेंशा सजदे में हमने सर झुकाया है।
अभिजीत ठाकुर
जिनके पास रही मुद्दतोँ वक्त की कमी सी।
जैसे किताबोँ से सूखे गुलाब की खुशबू सा,
आज हैरां हूँ मैं, वो मेहरबां वेवक्त आया है।
वो बड़े ही लज्जत ए अदब से मिला गले,
बेरहमी से जिसने मेरा घर जलाया है।
मोहब्बत में हम बस मुसकरा ही सके,
जब मुआफ़ी में उन्होँने सर झुकाया है।
अब वक्त ए अलविदा है हमारे दरम्यां,
खुश रहें वो हमेंशा सजदे में हमने सर झुकाया है।
अभिजीत ठाकुर
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