Hindi Poetry:रिश्ते दरक रहें अब परिवारोँ में!! - Path Me Harshringar : by Abhijit Thakur

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Friday 25 January 2019

Hindi Poetry:रिश्ते दरक रहें अब परिवारोँ में!!


कोई तोड़ गया है मंका,
परिंदा बसेरे पर कहाँ जाये।

वहशी हो गया हैं अँधेरा,
यौवन का सवेरा कैसे छिपाऐँ॥

रिश्ते दरक रहें अब परिवारोँ में,
बेगैरत सब, जुर्म हम किसे बतायेँ।

अपनोँ ने जला दिया को, लालच में,
दीये की आग पर दोष हम क्यों लगाऐँ।

सुलगती सी रही है इंसीनियत सदा, धुआँ भी है,
हिम्मत है तो आईये हैवानियत को हम जिंदा दफनाऐँ।

अभिजीत ठाकुर

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