चीख गूँज रही
है अब तक अतंस
में,सोता फूट रहा है
अब तक मेरे मन मे,
वक्त ने जैसे पुरवाई
के रूप में खुरच दिये
जख्म गहरे!
सुबह सी जिंदगी
अब सांझ बन चली
है। सफर है बाकी
अब भी, मगर
उजालोँ के हैँ अभाव।
आओ! हम तुम चले इन
अंतहीन पगडंडियोँ पे
प्रेम दीप के उजीते के साथ!
खोजने इक किरन सत्य की
वादा है मेरा!
खो देगी संवेदना
जब त्वचा
स्पर्श हो जाएंगे
जब अनाथ
मेरी पलकों पर
सुरक्षित रहेंगे
तुम्हारी पलकों
के निशान!
पवित्र आलिंगन
की शक्ल में
सम्बन्धों के महाप्रलय
के बाद इतना बचाने
में, सफल रहूंगा मैं !!
है अब तक अतंस
में,सोता फूट रहा है
अब तक मेरे मन मे,
वक्त ने जैसे पुरवाई
के रूप में खुरच दिये
जख्म गहरे!
सुबह सी जिंदगी
अब सांझ बन चली
है। सफर है बाकी
अब भी, मगर
उजालोँ के हैँ अभाव।
आओ! हम तुम चले इन
अंतहीन पगडंडियोँ पे
प्रेम दीप के उजीते के साथ!
खोजने इक किरन सत्य की
वादा है मेरा!
खो देगी संवेदना
जब त्वचा
स्पर्श हो जाएंगे
जब अनाथ
मेरी पलकों पर
सुरक्षित रहेंगे
तुम्हारी पलकों
के निशान!
पवित्र आलिंगन
की शक्ल में
सम्बन्धों के महाप्रलय
के बाद इतना बचाने
में, सफल रहूंगा मैं !!
अभिजीत ठाकुर
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