Hindi poetry- silently observation: अक्सर कई चेहरों के ईर्दगिर्द... बीचोंबीच! - Path Me Harshringar : by Abhijit Thakur

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Sunday 7 April 2019

Hindi poetry- silently observation: अक्सर कई चेहरों के ईर्दगिर्द... बीचोंबीच!


अक्सर कई चेहरों
के इर्द गिर्द...बीचोंबीच!
मेरी खामोशियाँ बुन रहीं होती हैं!

मेरी ही भावनाओं का 
अक्स...जो मुझे बताती
हैं बेरौनक हो रहा हूँ या 
परेशान कर रहा है ये मौन!

देखने लगता हूँ धुंआ विकारों का,
तोड़ किनारें बह जाता हूं निरंकुश!
मुझको मैं ही भूल रहा होता हूँ! 
कहीं साध्य असाध्य तो न हो गया हो,
खुश हूं फिर,ये सब "देख" रहा कौन?
अभिजीत ठाकुर


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