जय गुरूदेव
श्रीमति रक्षा रतूडी को बाबा जी ने स्वपन मे दर्शन देकर मंत्र दे दिया ! उन्हे आदेश दिया कि ( स्वपन मे) स्त्रोत- रत्नाकर का अमुक पृष्ठ खोलो , उसे खोल कर " रामरामेति रामेति रमे रामे मनोरमे , सहस्त्र नाम त्तयुलयं राम नाम वरानने". पढने के साथ राम मंत्र भी उपलब्ध करा दिया ! इसी स्वपन के साथ साथ उन्होने यह भी देखा ! कि एक विशिष्ट स्थान पर यग्य हवन हो रहा है ! और बाबा जी ने उनसे उस हवन मे तीन बार आहुति भी डलवाई ! साथ मे खिचडी प्रसाद खाने को दिया ! नीद खुलने पर उन्हे वे मंत्र याद रहा ! वह स्थान भी याद रहा जहाँ हवन हो रहा था !
तीसरे दिन ही वे अपने पति के साथ नैनीताल किसी काम से गयी तो कैचीधाम दर्शनो को भी आ पहूँची ! श्री माँ़को अपना स्वपन सुनाया तो माँ उन्हे यग्यशाला ले चली ! वहाँ जाकर रक्षा जी ने पाया कि ये वही यग्यशाला और हवनकुंड है जो उन्होने स्वपन मे देखे थे ! तब श्री माँ ने उनसे वह स्वपन पुरा कराते हूये उस हवन कुंड मे तीन आहुतियाँ भी डलवाई तथा खिचडी प्रसाद भी पवाया ! इस तरह बाबा का ये स्वपन नही सच था !
बाबा का स्वपन अर्थात बाबा जी के साक्षात दर्षन !
जय गुरूदेव
अनंत कथामृत!!
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